


देशभर में आज होली का पर्व मनाया जाएगा। रंगों का त्योहार होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। देश के कई हिस्सों में होली के त्योहार की शुरुआत बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही हो जाती है। होली केवल एक त्योहार ही नहीं, बल्कि सामाजिक मेलजोल और सभी को अपने समान समझने का प्रतीक भी है। इस दिन लोग आपसी भेदभाव भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं।
होली की शुरुआत कैसे हुई?
रंगों से खेली जाने वाली होली की परंपरा का संबंध भगवान कृष्ण से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण को अपने गहरे रंग के कारण संदेह था कि राधा और गोपियां उनसे प्रेम करेंगी या नहीं। माता यशोदा ने कृष्ण को सुझाव दिया कि वे राधा और उनकी सखियों पर रंग डाल सकते हैं। यही परंपरा आगे चलकर रंगों वाली होली का स्वरूप बन गई। वृंदावन, मथुरा, बरसाना और नंदगांव में आज भी इस परंपरा को बड़े हर्षोल्लास के साथ निभाया जाता है।
रंगों वाली होली का महत्व
होली भारत के सबसे प्रमुख और हर्षोल्लास से भरे त्योहारों में से एक है, जिसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। यह न केवल धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक रूप से भी इसका विशेष महत्व है। होली मुख्य रूप से बुराई पर अच्छाई की विजय, आपसी प्रेम, मेल-जोल और उत्सव का प्रतीक है। इस दिन सब लोग मिलकर रंगों से खेलकर लोग न केवल खुशियां बांटते हैं, बल्कि आपसी बैर-भाव भी भुला देते हैं. होली का सबसे सुंदर पहलू यह है कि इसमें जाति, धर्म, वर्ग और सामाजिक स्थिति का कोई भेदभाव नहीं होता। हर कोई एक-दूसरे को रंग लगाता है और “बुरा न मानो, होली है” कहते हुए हंसी-खुशी त्योहार मनाता है। होली के पर्व से जाति, धर्म, वर्ग, अमीरी-गरीबी जैसी दीवारें टूट जाती हैं और हर कोई समान रूप से इस त्योहार का आनंद लेते हैं। इसलिए होली सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का भी पर्व भी माना जाता है।